हर इक गाम पर हादिसा हम-सफ़र है कठिन किस क़दर ज़िंदगी की डगर है कटे कैसे अफ़्सुर्दा तारों की लौ में बहुत ही भयानक रुतों का सफ़र है भला क्यूँ न उलझे वो साँसों से अपनी परेशान ख़ुद से जो कोई बशर है हैं ऐसे में वीरानियाँ दिल की लाज़िम शजर आरज़ुओं का जब बे-समर है है 'रूबीना' का तजरबा ये बराबर कि उलझा हुआ ज़िंदगी का सफ़र है