कारवाँ इश्क़ की मंज़िल के क़रीं आ पहूँचा By Ghazal << मसरूर हो रहे हैं ग़म-ए-आश... जबीन-ए-शौक़ पर कोई हुआ है... >> कारवाँ इश्क़ की मंज़िल के क़रीं आ पहूँचा ख़ुद मिरे दिल में मिरे दिल का मकीं आ पहूँचा मेरे हर सज्दे से लब्बैक की आवाज़ आई आस्ताँ भी तो मिरे नज़्द-ए-जबीं आ पहूँचा तेरे दीवाने को अपना है न मंज़िल का है होश अपने मरकज़ से चला और वहीं आ पहूँचा Share on: