करवटें लेने दो फ़र्श-ए-ख़ाक पर नख़चीर को बे-धड़क हो कर निकालो तुम जिगर से तीर को वस्ल की लज़्ज़त उठाने दीजिए नख़चीर को तीर से दिल को न दिल से दूर कीजे तीर को ये हमारा है जिगर ये है हमारा हौसला ख़ून-ए-दिल से पालते हैं हम तुम्हारे तीर को जल्वा-फ़रमा दिल में तुम भी हो तुम्हारी याद भी देख लो पहले कलेजा फिर लगाना तीर को हो गया नावक ख़ता है शर्म से नीची नज़र लाओ हम रख लें कलेजे में तुम्हारे तीर को आ के लिपटा है मिरे सीने से किस उल्फ़त के साथ तुम से बढ़ कर बा-वफ़ा पाया तुम्हारे तीर को चूम कर आया है ये दस्त-ए-हिनाई आप का क्यों न रक्खूँ मैं कलेजे से लगा कर तीर को ज़िंदगी भर को ख़लिश का लुत्फ़ पैदा कर दिया तुम ही बोलो क्या दु'आएँ दूँ तुम्हारे तीर को सुर्ख़ हो जाएँ न फ़र्त-ए-नाज़ुकी से उँगलियाँ क्यों निकालो दिल से तुम रहने दो दिल में तीर को क्या 'अजब घुल-मिल गया हो हसरत-ओ-अरमाँ के साथ ढूँड लो तुम ख़ुद ही आ कर दिल में अपने तीर को दिल को ताका है तो बेहतर है मगर अपनी तरह चुटकियाँ लेने की 'आदत तो सिखा दो तीर को दिल तो दिल पहलू भी छेदा छेद कर मेरा जिगर क्यों न पैग़ाम-ए-अजल समझूँ तुम्हारे तीर को