कसक दिल की मिटाने में ज़रा सी देर लगती है

कसक दिल की मिटाने में ज़रा सी देर लगती है
किसी का ग़म भुलाने में ज़रा सी देर लगती है

किसी को चाह कर अपना बनाना ठीक है लेकिन
मोहब्बत आज़माने में ज़रा सी देर लगती है

तुम्हें पाने की ख़्वाहिश में हुआ एहसास ये मुझ को
मुक़द्दर आज़माने में ज़रा सी देर लगती है

जिसे मिन्नत मुरादों से बड़ी मुश्किल से पाया हो
उसे दिल से भुलाने में ज़रा सी देर लगती है

कि जिस दिल की ज़मीं बरसों से बंजर हो तो फिर उस पर
नई चाहत उगाने में ज़रा सी देर लगती है

ग़ज़ल पढ़ कर तो आसानी से महफ़िल लूट सकते हो
मगर इज़्ज़त कमाने में ज़रा सी देर लगती है

दिल-ए-मुज़्तर को आख़िर कौन समझाएगा ऐ 'राही'
सुकून-ए-क़ल्ब पाने में ज़रा सी देर लगती है


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