क़स्द करता है बगूलों से लिपट जाने का कितना दिलचस्प ये अंदाज़ है दीवाने का बढ़ गया हद से जुनूँ आप के दीवाने का वक़्त अब आ गया पर्दे से निकल आने का लफ़्ज़-ए-कुन से कहीं तख़्लीक़-ए-दो-आलम होती हुस्न-ए-अंदाज़ था ये आप के फ़रमाने का सोज़-ए-उल्फ़त से जले दोनों बराबर लेकिन शम्अ' बदनाम है और नाम है परवाने का दिल-ए-'इक़बाल' पे अंदोह-ए-मोहब्बत क्या है एक बादल है बरसने का न बरसाने का