काश अब्र करे चादर-ए-महताब की चोरी ता मुझ से भी हो जाम-ए-मय-ए-नाब की चोरी टुक तकिया पे सर धर के रहा सो तो लगाई साहब ने हमें मसनद-ए-कम-ख़्वाब की चोरी सीमाब के आँसू वो सदा रोए इलाही की जिस ने हो मेरे दिल-ए-बेताब की चोरी वो इश्क़ कि सच आँखों से काजल को चुरा ले किस तरह न आशिक़ के करे ख़्वाब की चोरी मुझ को सर-ए-बाज़ार घिसटवा के निकाला की उस ने ही कुछ ख़ाना-ए-नव्वाब की चोरी जिस ने कि मिरे चेहरे से आब आह उड़ा ले साबित हुई उस पर दुर-ए-नायाब की चोरी शब सेंध जो दी दाग़ की एक चोर ने 'इंशा' तो हो गई सब सब्र के अस्बाब की चोरी