न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है फ़क़त मैं ही मैं हूँ तो फिर तू ही तू है न ये है न वो है न मैं हूँ न तू है हज़ारों तसव्वुर और इक आरज़ू है न उम्मीद झूटी न कुछ यास सच्ची नहीं जो कहीं भी वही चार-सू है किसे ढूँढते हैं यही ढूँढते हैं यही जुस्तुजू है अगर जुस्तुजू है जगाएगा किस तरह शोर-ए-क़यामत ख़मोशी से नाचार हर गुफ़्तुगू है ख़ुदी भी हमारी ख़ुदाई सही वही हम-नशीं है वही दू-ब-दू है मगर दशना था साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-साक़ी कि जो ज़ख़्म है साग़र-ए-मुश्क-बू है