काश मिटती हुई ख़ुशबू को सहारा मिल जाए शाख़ से टूटे हुए फूल का रिश्ता मिल जाए सोचे सूरज से कहो ऐसी कोई गर्दिश-ए-नौ जिस्म से जिस्म मिले साए से साया मिल जाए दश्त कहता है मिरे पास तो क़तरा भी नहीं प्यास कहती है मुझे पीने को दरिया मिल जाए नूर फिर नूर है चमकेगा वो जुगनू ही सही शर्त ये है कि उसे थोड़ा अंधेरा मिल जाए मेरे हर शे'र के लब पर ये दुआ है 'काज़िम' जिस क़बीले का हूँ शाइ'र वो क़बीला मिल जाए