पेड़ ता'बीर के हरे होते मेरे गर ख़्वाब ना बिके होते काश हम एक ही मोहल्ले में मिल के इक साथ ही बड़े होते फिर भी कुछ आसरा तो हो जाता साथ खोटों के गर खरे होते हम कभी रास्ता भटकते नहीं दीप राहों में गर जले होते दश्त से यूँ न वास्ता पड़ता हम अगर इश्क़ से परे होते धूप से दोस्ती अगर होती मेरे घर के शजर हरे होते मैं तो आवाज़ दे रही थी तुम्हें दो घड़ी काश तुम रुके होते