कशाँ कशाँ लिए जाता है कू-ए-यार मुझे मैं क्या करूँ नहीं दिल पर जो इख़्तियार मुझे किसी की मध-भरी आँखों से क्या मिली आँखें समझ रहे हैं मिरे दोस्त बादा-ख़्वार मुझे मुझे ख़बर है कि अब तुझ को पा नहीं सकता तो याद क्यूँ तिरी आती है बार बार मुझे तिरे ख़याल में ख़ुद को भुला दिया इतना न मिल सकेगी कभी तेरी रहगुज़ार मुझे अजल से पूछ लो आने में देर क्यूँ कर दी कि नागवार है इस वक़्त इंतिज़ार मुझे न आए थे तो तमन्ना थी क्यूँ नहीं आए वो आए छोड़ गए कर के बे-क़रार मुझे 'हज़ीं' तमन्ना है अब मुझ को जी से जाने की कि जीते-जी तो किसी का मिला न प्यार मुझे