कशाकश से हस्ती की दामन छुड़ाएँ चलो ना अजल ही से रिश्ता जुड़ाएँ वो नग़्मा मिरा मेरी लय में सुनाएँ जवानी को पुर-कैफ़-ओ-रंगीं बनाएँ ख़ुदारा ये आँखें न आँसू बहाएँ किसी की नज़र से न मुझ को गिराएँ सफ़ीना डुबोना है मौजों की फ़ितरत तो क्या नाख़ुदा क्या मुआफ़िक़ हवाएँ तू ख़ुद्दार बन जा ऐ शौक़-ए-नज़ारा वो ख़ुद बाम पर आएँ तुझ को बुलाएँ चलो ना कहीं दूर दुनिया से चल कर अलग अपनी दुनिया-ए-उल्फ़त बनाएँ ख़िज़ाँ-आशना हूँ मैं 'अफ़सर' मुझे क्या बहारें गुलिस्ताँ में आती हैं आएँ ज़माने की चालें समझते हैं 'अफ़सर' अब ऐसे नहीं हम कि धोके में आएँ