लम्हा लम्हा शेवन था भीगा भीगा दामन था काँटा काँटा मख़्ज़न था बदला बदला गुलशन था हरियाली तक ख़ुश्क हुई सूखा सूखा सावन था यकजाई ना-मुम्किन थी टूटा टूटा बंधन था अक्स न अपना देख सके रेज़ा रेज़ा दर्पन था वीराने में फूल खिले उजड़ा उजड़ा गुलशन था लहद थी अपनी सहरा में तन्हा तन्हा मदफ़न था हर-सू ग़म के साए थे सहमा सहमा बचपन था कूचा उस का काहकशाँ ज़र्रा ज़र्रा रौशन था 'साख़िर' को सब भूल गए अपना अपना बद-ज़न था