कट गया रिश्ता-ए-उलफ़त जो तिरा नाम आया दिल वफ़ादार था लेकिन न मिरे काम आया इश्क़ के हाथों चराग़ एक सर-ए-शाम आया तीरा-बख़्ती में मिरा दिल ही मिरे काम आया तलब-ए-मुल्क-ए-अदम से न जहाँ देख सका अभी मंज़िल पे न उतरा था कि पैग़ाम आया नाज़िश-ए-दहर न था मैं तो पस-ए-मुर्दन क्यूँ महफ़िल-ए-ग़ैर में सौ बार मिरा नाम आया शम्अ' रोई तो वो कुछ देर सही तुर्बत पर ख़ैर कोई तो ज़माने में मिरे काम आया