काट कर कुछ पेड़ सब को घर बनाने की पड़ी है यार किस को पंछियों के आशियाने की पड़ी है बाप का साया उठा है आज उस बेटे के सर से गाँव के लोगों को बस खाने खिलाने की पड़ी है बारहा ही ज़ख़्म देते जा रहे हैं हम-नफ़स भी और हमें भी ज़ख़्म खा कर मुस्कुराने की पड़ी है वो कभी ता'लीम लेने जा नहीं पाया ख़ुदाया पर उसे औलाद को हर दम पढ़ाने की पड़ी है इस बदन से ही तो रिश्ता था यहाँ पर दोस्त सब का मर गया अब जिस्म तो जल्दी जलाने की पड़ी है एक तो हम इश्क़ में यारी गँवा बैठे हैं 'शेखर' एक हम को इश्क़ जीवन भर निभाने की पड़ी है