क़ातिलो माँगें तो सौग़ात-ए-सफ़र दे देना मेरे बच्चों को मिरा कासा-ए-सर दे देना लोग पूछेंगे कि परदेस से क्या लाए हो रास्तो हम को ज़रा गर्द-ए-सफ़र दे देना सरहदें जिस की मिलें दार से ज़िंदानों से ज़िंदगी मुझ को वही राहगुज़र दे देना अहल-ए-लश्कर जो कमीं-गाहों में वापस जाना मेरे हाथों में भी बोसीदा सिपर दे देना घर से मस्मूम हवाओं को गुज़रने के लिए कोई रौज़न कोई खिड़की कोई दर दे देना कोई कहता है ये मक़्तल की ज़मीं से जा कर आसमानों को मिरे शम्स-ओ-क़मर दे देना अब जो घबरा के अँधेरे से ये दुनिया 'काज़िम' रौशनी माँगे तो ताबूत-ए-सहर दे देना