सब यहाँ धोका है हम तुम कुछ नहीं ज़िंदगी में हैं सभी ग़म कुछ नहीं खेलते हैं कर्ब के तूफ़ान से जानते हैं हम तबस्सुम कुछ नहीं ख़ूँ उगलता ज़िंदगी का साज़ है जिस को कहते हैं तरन्नुम कुछ नहीं एक पल में रूह रुख़्सत हो गई जिस्म के अंदर तसादुम कुछ नहीं मौत ने लूटी है मेरी ज़िंदगी ख़ूँ की मौजों में तलातुम कुछ नहीं बुझ गई उम्मीद की किरनें सभी महर को अब माह-ओ-अंजुम कुछ नहीं ज़िंदगी 'तौक़ीर' ऐसा है परिंद जिस के पर हैं चोंच और दुम कुछ नहीं