काटना सख़्त-तर है मगर काटिए चैन से ज़िंदगी का सफ़र काटिए दुश्मनों तक रसाई नहीं आप की सिर्फ़ अपने अज़ीज़ों के सर काटिए है बसेरा परिंदों का हर शाख़ पर सोच कर जंगलों के शजर काटिए उम्र भर नर्म बहती नदी की तरह प्यार से पत्थरों का जिगर काटिए हम फ़क़ीरों का है ये मुक़द्दर 'ज़िया' उम्र-भर ज़िंदगी दर-ब-दर काटिए