लहू है आस्तीं का या हिना है हथेली पर दिया सा जल रहा है वही इक पेड़ सब का आसरा है जो जलती धूप में तन्हा खड़ा है चलो तुम भी कोई पत्थर उठा लो मिरे हाथों में भी इक आइना है तनी है चाँदनी सूरज के रथ पर मगर ये ख़्वाब है या वाक़िआ' है 'ज़िया' परछाइयों का शहर है ये यहाँ किस को कोई पहचानता है