क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे यानी वो मैं ही क्यूँ न हूँ तुझ सा कहें जिसे वो इक निगाह ऐ दिल-ए-मुश्ताक़ इस तरफ़ आशोब-गाह-ए-हश्र-ए-तमन्ना कहें जिसे बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है वो दर्द दिल में दे कि मसीहा कहें जिसे ऐ हुस्न-ए-जल्वा-ए-रुख़-ए-जानाँ कभी कभी तस्कीन-ए-चश्म-ए-शौक़-ए-नज़ारा कहें जिसे इस ज़ोफ़ में तहम्मुल-ए-हर्फ़-ओ-सदा कहाँ हाँ बात वो कहूँ कि न कहना कहें जिसे ये बख़्शिश अपने बंदा-ए-नाचीज़ के लिए थोड़ी सी पूँजी ऐसी कि दुनिया कहें जिसे हम-बज़्म हो रक़ीब तो क्यूँ-कर न छेड़िए आहंग-ए-साज़-ए-दर्द कि नाला कहें जिसे पैमाना-ए-निगाह से आख़िर छलक गया सर जोश-ए-ज़ौक़-ए-वस्ल-ए-तमन्ना कहें जिसे 'आसी' जो गुल से गाल किसी के हुए तो क्या माशूक़ वो कि सब से निराला कहें जिसे