शब-ए-ग़म की ज़ुल्फ़ों के साए बढ़ा दें कहो तो सितारों की शमएँ बुझा दें मसीहा-सिफ़त हो जला दो नज़र से मरीज़ान-ए-उल्फ़त भी दाद-ए-दवा दें जो तुम इज़्तिराब-ए-मोहब्बत मिटा दो तुम्हें बे-क़रार-ए-मोहब्बत दुआ दें मोहब्बत के दस्तूर सब से निराले हमीं काम आएँ हमीं को सज़ा दें तुम्हीं ने पिला कर तो बे-ख़ुद किया था तुम्हें चाहिए था हमें आसरा दें हमें ज़हर का जाम अमृत है 'आसी' मगर शर्त है आप ख़ुद ही पिला दें