क़ुबूल कर के तेरा ग़म ख़ुशी ख़ुशी मैं ने तिरे जमाल को बख़्शी है ज़िंदगी मैं ने बस इक निगाह-ए-तवज्जोह पे इस तरह ख़ुश हूँ कि जैसे दौलत-ए-कौनैन लूट ली मैं ने धड़क रहा था मिरे हर-नफ़स में दिल उन का सुनी क़रीब से आवाज़ दूर की मैं ने ज़माना ता-ब-अबद उन को भर नहीं सकता जिगर पे खाए हैं वो ज़ख़्म-ए-दोस्ती मैं ने तिरे जमाल की सर-मस्तियों में गुम हो कर हर एक साअत-ए-हस्ती गुज़ार दी मैं ने ख़ुदा-ए-दो-जहाँ इस जुर्म को मुआ'फ़ करे उड़ाई है लब-ए-गुल-रंग की हँसी मैं ने 'हमीद' मुझ को ज़माना भुला नहीं सकता बना लिया है मोहब्बत को ज़िंदगी मैं ने