क़ौल-ओ-क़रार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू लैल-ओ-नहार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू ख़्वाबों का सूद ले के तमन्ना की आग में चीख़-ओ-पुकार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू अपने ही फ़लसफ़ों का जनाज़ा निकाल कर कुछ सोगवार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू अपनी ग़ज़ल का क़ाफ़िया ले इस दयार में ले कर उधार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू इश्क़-ए-अज़ल है सज्दा-ए-तौहीद की नज़र हम बे-क़रार जलते हैं दौलत के रू-ब-रू