कौन अब जाए तिरे पास शिकायत ले कर रोज़ आते हैं तिरे ख़्वाब मोहब्बत ले कर इस क़दर मुझ से तकल्लुफ़ की ज़रूरत क्या है मैं अगर तुझ को छुऊँगा तो इजाज़त ले कर हुस्न बे-पर्दा हुआ और तवक़्क़ो ये है इश्क़ देखे उसे आँखों में शराफ़त ले कर दफ़्तर-ए-इश्क़ का सरकारी मुलाज़िम हूँ मैं लौट जाऊँगा तिरी दीद की रिश्वत ले कर अपना चेहरा था कभी जिन की तमन्ना 'यासिर' अब वो कहते हैं निकल जाओ ये सूरत ले कर