कौन बरहम है ज़ुल्फ़-ए-जानाँ से तंग हूँ ख़ातिर-ए-परेशाँ से मुज़्दा ऐ ख़ार-ए-दश्त दस्त-ए-जुनूँ गुज़रे हम दामन ओ गरेबाँ से दाँत किस का है जाम पर साक़ी मय टपकती है अब्र-ए-नैसाँ से गर यही रंग है ज़माने का बाज़ आया मैं कुफ़्र ओ ईमाँ से बैठ जाता है आ के मेरे पास जो निकलता है बज़्म-ए-जानाँ से हूर आशिक़-नवाज़ है कोई पहले पूछेंगे हम ये रिज़वाँ से