कौन देता रहा सहरा में सदा मेरी तरह आज तन्हा हूँ मगर कोई तो था मेरी तरह मैं तिरी राह में पामाल हुआ जाता हूँ मिट न जाए तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मेरी तरह मैं ही तन्हा हूँ फ़क़त तेरी भरी दुनिया में और भी लोग हैं क्या मेरे ख़ुदा मेरी तरह रंग-ए-अर्बाब-ए-रज़ा-पेशा मुबारक हो तुझे कोई होता ही नहीं तुझ से ख़फ़ा मेरी तरह किस को हासिल हो तिरी चश्म-ए-सियह के आगे मंसब-ए-सिलसिला-ए-जुर्म-ओ-ख़ता मेरी तरह आश्ना कौन है नक़्श-ए-क़दम-ए-निकहत का याद किस को है तिरे घर का पता मेरी तरह 'शाज़' तारा नहीं टूटा कोई दिल टूटा है राह तकता था शब-ए-ग़म कोई क्या मेरी तरह