पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या जब मिरा ख़ूँ हो चुका शमशीर फिर खींची तो क्या ऐ मुहव्विस जब कि ज़र तेरे नसीबों में नहीं तू ने मेहनत भी पय-ए-इक्सीर फिर खींची तो क्या गर खिंचे सीने से नावक रूह तू क़ालिब से खींच ऐ अजल जब खिंच गया वो तीर फिर खींची तो क्या खींचता था पाँव मेरा पहले ही ज़ंजीर से ऐ जुनूँ तू ने मिरी ज़ंजीर फिर खींची तो क्या दार ही पर उस ने खींचा जब सर-ए-बाज़ार-इश्क़ लाश भी मेरी पय-ए-तशहीर फिर खींची तो क्या खींच अब नाला कोई ऐसा कि हो उस को असर तू ने ऐ दिल आह-ए-पुर-तासीर फिर खींची तो क्या चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या खींच ले अव्वल ही से दिल की इनान-ए-इख़्तियार तू ने गर ऐ आशिक़-ए-दिल-गीर फिर खींची तो क्या क्या हुआ आगे उठाए गर 'ज़फ़र' अहसान-ए-अक़्ल और अगर अब मिन्नत-ए-तदबीर फिर खींची तो क्या