कौन है किस का गिरफ़्तार न समझा जाए यही बेहतर है ये असरार न समझा जाए मैं ने कब दुनिया में आने की तमन्ना की थी मुझ को दुनिया का तलबगार न समझा जाए सारी दुनिया को बदलना कोई आसान नहीं किसी दीवाने को बे-कार न समझा जाए उस को बातिन से सरोकार है ज़ाहिर से नहीं दीन को रौनक़-ए-बाज़ार न समझा जाए इक यही बात तो है इस में समझने वाली मुझे काफ़िर उसे दीं-दार न समझा जाए तेरी दुनिया में तिरे हुस्न का शैदाई हूँ ऐ ख़ुदा मुझ को गुनहगार न समझा जाए नौ-ए-इंसाँ की बड़ाई का तक़ाज़ा है यही रंग और नस्ल को मेआर न समझा जाए