ये मय-कशी का सबक़ है नए निसाब के साथ कि ख़ून-ए-दिल हमें पीना है अब शराब के साथ बस इस यक़ीन पे होती हैं लग़्ज़िशें अक्सर कि रहमतों का भी दाता है तू अज़ाब के साथ ये क़ुर्बतों का इशारा है या जुदाई का जो ज़र्द फूल मिला है तिरे जवाब के साथ ज़रा वो साथ भी चलते हैं लौट जाते हैं हिजाब टूट रहे हैं मगर हिजाब के साथ कहीं है तंगी सुबू की कहीं फ़रावानी तो फिर गिरफ़्त भी मौला उसी हिसाब के साथ अगर रक़ीब नहीं है तो कौन है वो शख़्स दिखाई देता है जो आज-कल जनाब के साथ ख़याल-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ और हुसूल-ए-मंज़िल-ए-इश्क़ ज़वाल-ए-उम्र में जैसे कोई शबाब के साथ फ़क़त यूँ शोर मचाने का फ़ाएदा क्या है सज़ा भी देना ज़रूरी है एहतिसाब के साथ हमारे हो तो ज़रा खुल के ए'तिमाद करो नया सवाल उठाते हो क्यूँ जवाब के साथ ये अपने आप को पाना है तुझ को खोना क्यूँ तमाम उम्र कटी है इस इज़्तिराब के साथ ये सब ग़ुरूब के आसार हैं अयाँ 'आदिल' कि साए बढ़ने लगे ढलते आफ़्ताब के साथ