कौन है किस का सरापा नज़र आता है मुझे कौन ये ख़्वाब में हर-वक़्त डराता है मुझे कर सका उन से न कुछ बात ब-वक़्त-ए-रुख़्सत यही एहसास अकेले में रुलाता है मुझे पेश-ख़ेमा किसी साज़िश का नज़र आता है दूर से जब कोई आईना दिखाता है मुझे दौड़ पड़ता हूँ बड़े प्यार से बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर कोई चेहरा जो मोहब्बत से बुलाता है मुझे ग़ौर से सुनता हूँ सर धुनता हूँ रो पड़ता हूँ जब कोई नग़मा-ए-पुर-दर्द सुनाता है मुझे गर्द-आलूद फ़ज़ा में दिल-ए-दीवाना मिरा शौक़-ए-परवाज़ के अंदाज़ सिखाता है मुझे जाने क्यों शहर-ए-तमन्ना में 'कमाल' अपनी तरह आज हर शख़्स परेशाँ नज़र आता है मुझे