कौन होते हैं वो महफ़िल से उठाने वाले यूँ तो जाते भी मगर अब नहीं जाने वाले आह-ए-पुर-सोज़ की तासीर बुरी होती है ख़ुश रहेंगे न ग़रीबों को सताने वाले कूचा-ए-यार में हम को तो क़ज़ा लाई है जान जाएगी मगर हम नहीं जाने वाले हम को क्या काम किसी और परी से तौबा आप भी ख़ूब हैं बे-पर की उड़ाने वाले जिस क़दर चाहिए बिठलाइए पहरे दर पर बंद रहने के नहीं ख़्वाब में आने वाले क्या क़यामत है कि रुलवा के हमें ऐ 'जौहर' क़हक़हे मार के हँसते हैं रुलाने वाले