कौन कहता है की नफ़रत को सदा दी जाए आओ बस दिल में वफ़ा और बढ़ा दी जाए हम-सफ़र लुत्फ़-ए-सफ़र और दो-बाला होगा छाँव में धूप अगर थोड़ी मिला दी जाए अब तो वहशत मिरी चाहत की यही कहती है मैं गुनहगार हूँ तो मुझ को सज़ा दी जाए अब्र ख़ुशियों के भी बरसेंगे यक़ीं है मुझ को ग़म की चादर तो मिरे सर से हटा दी जाए मैं ने असरार अज़िय्यत में ही खुलते देखे बात छोटी है मगर सब को बता दी जाए उम्र फिर उस की असीरी में गुज़ारूँ 'ज्योति' फिर से मुझ को वही आज़ाद फ़ज़ा दी जाए