मैं अपने दिल की तरह आइना बना हुआ हूँ सो हैरतों के लिए मसअला बना हुआ हूँ पहुँच तो सकता था मंज़िल पे मैं मगर ऐ दोस्त मैं दूसरों के लिए रास्ता बना हुआ हूँ मैं जब चला था तो अपने भी मुझ को छोड़ गए और आज देख लो मैं क़ाफ़िला बना हुआ हूँ सितम तो ये है कि है मेरी दास्ताँ और मैं शरीक-ए-मत्न नहीं हाशिया बना हुआ हूँ कभी था क़ैस कभी 'मीर' और अब 'फ़रताश' सुलूक-ए-इश्क़ का इक सिलसिला बना हुआ हूँ