कौन कहता है कुछ भला न हुआ काम तेरा कोई बुरा न हुआ तेरा चाहा हुआ तो क्या न हुआ हाँ मगर कुछ मिरा कहा न हुआ नाम ही नाम ख़िज़्र का सुन लो कोई अपना तो रहनुमा न हुआ वो बशर क्या कि ज़ात से जिस की दूसरे का कभी भला न हुआ तुफ़ है उस पर कि जिस से ऐ 'इफ़्फ़त' काम ही कोई काम का न हुआ