कौन से शहर में किस घर में कहाँ होना है मैं वहाँ होता नहीं मुझ को जहाँ होना है एक जुगनू ने ये नुक्ता मुझे ता'लीम किया किस पे पोशीदा रहो किस पे अयाँ होना है इस लिए तौलती रहती हैं परों को रूहें हुक्म आते ही सर-ए-अर्श-ए-रवाँ होना है वक़्त आ पहुँचा है अब तख़्त गिराए जाएँ दोस्तो हम से ही ये कार-ए-गराँ होना है इस क़दर दिल ने ख़सारा तो नहीं सोचा था ये तो तय था कि मोहब्बत में ज़ियाँ होना है मज़हब-ए-इश्क़ में जाएज़ है सभी कुछ 'हाशिम' आज तुम जान हो कल दुश्मन-ए-जाँ होना है