कौन सुनता है सिर्फ़ ज़ात की बात लब पे है मेरे काएनात की बात क्यूँ शिकन पड़ गई है अबरू पर मैं तो कहता हूँ एक बात की बात शम्अ' रोती है तारे डूबते हैं अब फ़साना बनेगी रात की बात सुब्ह-ए-नौ मुस्कुराने वाली है क्या कहें शब के हादसात की बात मुज़्तरिब हो रहे हैं दीवाने है तुम्हारी नवाज़िशात की बात बज़्म-ए-'अख़्तर' में क्यूँ ख़मोश हो तुम है ये बेजा तकल्लुफ़ात की बात