कौन था दायरा-ए-शाम-ओ-सहर से बाहर कैसे पहुँचा वो ज़माने के असर से बाहर एक मौसम था अनोखा सा बदन के अंदर एक मौसम था अजब सा मिरे घर के बाहर क्या पता ख़ौफ़ का एहसास है क्यों इतना मुझे फिर कोई निकला है ज़िंदान-ए-शरर से बाहर मैं हवाओं में कोई घोंसला किस तरह बनाऊँ इक परिंदा हूँ मैं टूटे हुए पर के बाहर क़ैद कर रक्खा है मुट्ठी में ये सूरज किस ने रात है बिखरी हुई सी मिरे घर के बाहर