ख़ाली ख़ाली मकाँ के मंज़र देख हर तरफ़ फिर वही समुंदर देख तोड़ कर इक पहाड़ से रिश्ता गुम हुआ है नदी में पत्थर देख रात सब को निखार देती है दिन में तू रंग-ए-माह-ए-अख़्तर देख आँख में रख ले रौशनी पहले फिर ज़रा शाम-ए-ग़म का लश्कर देख तुझ को मंज़िल भी मिल ही जाएगी पहले रस्ते का मील-पत्थर देख घर के बाहर भी एक आँधी है एक तूफ़ान मेरे अंदर देख