कौन याँ बाज़ार-ए-ख़ूबी में तिरा हम-संग है हुस्न के मीज़ाँ में तेरे महर-ओ-मह पासंग है मैं वो हूँ दीवाना-ए-सरख़ील-ए-अरबाब-ए-जुनूँ हाथ में पत्थर लिए हर तिफ़्ल मेरे संग है जा-ए-तकिया आशिक़-ए-बे-ख़ानुमाँ को वक़्त-ए-ख़्वाब ज़ेर-ए-सर कूचे में तेरे ख़िश्त है पासंग है इस जवाहर-पोश के देखे हैं वो याक़ूत-ए-लब जिस की रंगीनी के आगे लअ'ल भी इक संग है सुरमई आँखों का तेरे जो कोई बीमार हो एक मील उस के तईं रखना क़दम फ़रसंग है जल गया तन्हा न कोह-ए-तूर ही परवाना-वार आग तेरे इश्क़ की शम-ए-दिल-ए-हर-संग है सख़्त-जानी मेरी और ज़ालिम तिरे संगीं-दिली आह मिस्ल-ए-आसिया ये संग ऊपर संग है बाप का है फ़ख़्र वो बेटा कि रखता हो कमाल देख आईने को फ़रज़ंद-ए-रशीद-ए-संग है सर मिरा तेरे क़दम के साथ यूँ है पेश-रौ ठोकरों में जिस तरह से रह-गुज़र का संग है ए'तिक़ाद-ए-मोमिन-ओ-काफ़िर है रहबर वर्ना फिर कुछ नहीं दैर-ओ-हरम में ख़ाक है पासंग है ये सदा घर घर करे है आसिया फिर फिर मुदाम मुश्त-ए-गंदुम के लिए छानी के उपर संग है शैख़ की मस्जिद से ऐ 'बेदार' क्या है तुझ को काम सज्दा-गह अपना सनम के आस्ताँ का संग है