ख़ाक-ए-आशिक़ है जो होवे है निसार-ए-दामन ऐ मिरी जान तू मत झाड़ ग़ुबार-ए-दामन दोस्तो मुझ को न दो सैर-ए-चमन की तकलीफ़ अश्क ही बस है मिरा बाग़-ओ-बहार-ए-दामन सुर्ख़ जामा पे नहीं तेरे कनारी की चमक बर्क़ इस अब्र में होती है निसार-ए-दामन देखता क्या है गरेबाँ कि जुनून से नासेह याँ तो साबित न रहा एक भी तार-ए-दामन आस्तीं तक तो कहाँ उस के रसाई 'बेदार' दस्तरस मुझ को नहीं ता-ब-कनार-ए-दामन