कौन-ओ-मकाँ में यारो आबाद हैं तो हम हैं इस अर्ज़ और समा की बुनियाद हैं तो हम हैं वहदत से ता-ब-कसरत सब से ज़ुहूर अपना गर एक हैं तो हम हैं हफ़्ताद हैं तो हम हैं सब मर्ज़-बूम-ए-आलम है जल्वा-गाह अपनी वीरान हैं तो हम हैं आबाद हैं तो हम हैं अक़्लीम-ए-ख़ैर-ओ-शर में है हुक्म अपना जारी गर दाद हैं तो हम हैं बे-दाद हैं तो हम हैं इस गुलशन-ए-जहाँ में सब है बहार अपनी गर क़ुमरी हैं तो हम हैं शमशाद हैं तो हम हैं हैं जौहर अपने यारो हर रंग में नुमायाँ गर तेग़ हैं तो हम हैं जल्लाद हैं तो हम हैं है दस्त-गाह अपनी सब शय में कार-फ़रमा गर फ़स्द हैं तो हम हैं फ़स्साद हैं तो हम हैं ये दारगीर-ए-आलम सब अपनी हालतें हैं गर दाम हैं तो हम हैं सय्याद हैं तो हम हैं ये राज़ हम ने 'आसिम' 'ख़ादिम-सफ़ी' से पाया गर रुश्द हैं तो हम हैं इरशाद हैं तो हम हैं