क़ुव्वत-ए-जौर जाए छिन तुझ से जो तू जफ़ा करे तू भी हो बे-बस एक दिन ऐसा भी हो ख़ुदा करे छेड़े कोई जो ग़म की बात तेरा भी जाए दिल पे हाथ सीने में धड़कनों के साथ तीर सा कुछ चुभा करे तेरे भी होंट जाएँ सिल तू भी कभी हो मुन्फ़इल रुख़ पे बरस के अब्र-ए-दिल क़िस्सा-ए-दिल कहा करे आतिश-ए-शौक़ हो न कम बढ़ती ही जाए दम-ब-दम लज़्ज़त-ए-दिलबरी से ग़म तुझ को भी आश्ना करे ऊल-जुलूल बक गया तुझ को तिरा ये दिल-जला रब से मगर है ये दुआ कुछ न तिरा बुरा करे वक़्त की आए दिन की राड़ ज़ीस्त की दम-ब-दम लताड़ उस पे ग़मों की छेड़-छाड़ कोई न क्यूँ चिड़ा करे वस्ल की बर न आए आस कर के हज़ार इल्तिमास हिज्र में हो जो महव-ए-यास वो ये ग़ज़ल पढ़ा करे