कँवल हों आब में ख़ुश गुल सबा में शाद रहें तिरे हज़ीं तिरी आब-ओ-हवा में शाद रहें पलट के देस के बाग़ों में हम न जाएँगे शफ़क़-मिज़ाज हैं सहरा-सरा में शाद रहें चराग़ बाँटने वालों प हैरतें न करो ये आफ़्ताब हैं, शब की दुआ में शाद रहें गुलों की खेतियाँ काटी तिरे शहीदों ने गुलाब गूँधने वाले अज़ा में शाद रहें