तेरे जल्वे से मिरे दिल का फ़रोज़ाँ होना एक ज़र्रे का है ख़ुर्शीद-ब-दामाँ होना जब किसी ग़ुंचे का मुँह चूमती है मौज-ए-नसीम याद आता है तिरे लब का गुलिस्ताँ होना किस को फ़ुर्सत है कि हर बुत का जिगर चाक करे वर्ना मुश्किल तो न था कुफ़्र का ईमाँ होना अब कहाँ जाऊँ ये आशोब-ए-तमन्ना ले कर दर्द को आ गया मिज़राब-ए-रग-ए-जाँ होना साँस लेने को मुसाफ़िर की तरह ठहरे थे हाए उस साया-ए-दीवार का ज़िंदाँ होना