क़याम उम्र-ए-रवाँ का मुसाफ़िराना है जहाँ में रहते हैं जब तक कि आब-ओ-दाना है अबस ग़ुरूर है तौफ़ीक़-ए-ख़ैर पर ज़ाहिद ये उस की रहमत-ओ-बख़्शिश का इक बहाना है मुझे रियाज़त-ओ-ताअ'त पर ए'तिमाद नहीं सर-ए-नियाज़ मिरा तेरा आस्ताना है फ़ना ही का है बक़ा नाम दूसरा 'अंजुम' नफ़स की आमद-ओ-शुद मौत का तराना है