क़यामत से नहीं कम उस पे आ जाना मिरे दिल का बहुत मुश्किल है अब आसान होना मेरी मुश्किल का निगाह-ए-यास ने क्या कह दिया क़ातिल से मक़्तल में तड़पता है जो ख़ंजर काँपता है हाथ क़ातिल का सुकून-ए-दिल जो हासिल हो तो कोई कामयाबी हो मोहब्बत तुझ पे तोहमत है तड़प जाना ही बिस्मिल का मुसल्लत है ख़मोशी मौज-ए-दरिया पर ख़ुदा रक्खे मिज़ाज अच्छा नज़र आता नहीं है आज साहिल का उठा कर सुब्ह-ए-नौ ने रुख़ से पर्दा जब नज़र डाली न जाने ज़र्द चेहरा पड़ गया क्यों माह-ए-कामिल का सुराही ख़ुद झुकेगी ख़ुद चलेंगे जाम सर के बल बदल दूँगा मैं अब क़ानून साक़ी तेरी महफ़िल का वो क्या बतलाएगा 'अनवर' तुझे राह-ए-तलब तेरी पता जिस को नहीं है आज तक ख़ुद अपनी मंज़िल का