क़यामत-शोख़ आफ़त चुलबुला दिल मिरा दिल और फिर कैसा मिरा दिल तिरे गेसू से है उलझा हुआ दिल बहुत अब हद से अपनी बढ़ गया दिल तुम्हारे हाथ का तिल बन गया दिल तुम्हें धोका न दे बहरूपिया दिल ख़ुदा को जान सौंपी दिल बुतों को हमारे पास क्या था जान या दिल मुझे देखा तो बोले बज़्म में वो नए आए हैं ले कर ये नया दिल तिरे गेसू से ये बल कर रहा है कुछ अब और ज़ुल्फ़ों वाली बढ़ चला दिल हमारी जान पर बन बन गई है न दे दुश्मन को भी ऐसा ख़ुदा दिल न रंग आए तो उस की क्या ख़ता है हिना के साथ क्यूँ साना गया दिल मनाए कौन किस को कौन समझाए उधर मा'शूक़ इधर बिगड़ा हुआ दिल उभर कर दाग़ लाया है नया रंग बराबर दिल के है इक दूसरा दिल मिरे हक़ में ये पत्थर का बना था ख़ुदावंदा बुतों से मिल गया दिल हसीनों को समझता ही नहीं कुछ बहुत बनता है ख़ुद में ख़ुद-नुमा दिल मिलेंगे हश्र में दिल लेने वाले मिलेगा हश्र में बिछड़ा हुआ दिल रहेगा याद दिल का दिल से मिलना मिली दुनिया मिले हम तुम मिला दिल बहार आई कि आई वस्ल की शाम खिले ग़ुंचे खिली कलियाँ खिला दिल वो नावक को निगाह-ए-नाज़ समझा उसी धोके में तो मारा पड़ा दिल बहुत ही लुत्फ़ से उन से मिली आँख बहुत ही लुत्फ़ से उन से मिला दिल दिल-ए-मरहूम आता है बहुत याद 'रियाज़' ऐसा कहाँ अब चुलबुला दिल