खुली है कुंज-ए-क़फ़स में मिरी ज़बाँ सय्याद

खुली है कुंज-ए-क़फ़स में मिरी ज़बाँ सय्याद
मैं माजरा-ए-चमन क्या करूँ बयाँ सय्याद

दिखाएगा न अगर सैर-ए-बोस्ताँ सय्याद
फड़क फड़क के क़फ़स ही में दूँगा जाँ सय्याद

जहाँ गया मैं गया ले के दाम वाँ सय्याद
फिरा तलाश में मेरी कहाँ कहाँ सय्याद

दिखाया कुंज-ए-क़फ़स मुझ को आब-ओ-दाना ने
वगर्ना दाम कहाँ मैं कहाँ कहाँ सय्याद

उजाड़ा मौसम-ए-गुल ही में आशियाँ मेरा
इलाही टूट पड़े तुझ पे आसमाँ सय्याद

मैं खींचूँ दाम में बुलबुल तू आशियाना जला
बहम ये मशवरा करते हैं बाग़बाँ सय्याद

अजीब क़िस्सा है दिलचस्प इक हिकायत है
सुनाऊँगा गुल-ओ-बुलबुल की दास्ताँ सय्याद

न गुल खिलेंगे न चहकारेगा कोई बुलबुल
बहार-ए-बाग़ को होने तो दे ख़िज़ाँ सय्याद

हुमा-ए-ज़िंदा घसीटेगा दाम में शायद
बजा-ए-दाना बिछाता है उस्तुख़्वाँ सय्याद

ख़बर नहीं किसे कहते हैं गुल चमन कैसा
क़फ़स को जानते हैं हम तो आशियाँ सय्याद

उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है
कई बरस में हुआ है मिज़ाज-दाँ सय्याद

रहे न काबिल-ए-परवाज़ बाल-ओ-पर मेरे
क़फ़स से उड़ के मैं अब जाउँगा कहाँ सय्याद

क़फ़स को शाम से लटका के फ़र्श-ए-ख़्वाब के पास
सुना किया मिरी ता-सुब्ह दास्ताँ सय्याद

करेगा याद मिरे ज़मज़मों को बा'द मिरे
हूँ चंद रोज़ तेरे घर में मेहमाँ सय्याद

सुनाऊँ वाक़िआ' अपना तुझे तमाम-ओ-कमाल
जो गोश-ए-दिल से सुने मेरी दास्ताँ सय्याद

सितम ज़ियादा न कर हुक्म दे रिहाई का
पुकारते हैं गिरफ़्तार अल-अमाँ सय्याद

चमन में रक्खा न बुलबुल का नाम तक बाक़ी
ख़ुदा करे यूँही हो जाए बे-निशाँ सय्याद

हज़ार मुर्ग़-ए-ख़ुश-इल्हाँ चहकते हैं हरसू
बह-अज़-चमन हुआ अब तो तिरा मकान सय्याद

मैं झाँकता नहीं चाक-ए-क़फ़स से भी गुल को
न-hove ता मिरी जानिब से बद-गुमाँ सय्याद

असीर-ए-कुंज-ए-क़फ़स कर ब-शौक़ दाम में खींच
क़ज़ा ले आई है मुझ को कशाँ कशाँ सय्याद

परों को खोल दे ज़ालिम जो बंद करता है
क़फ़स को ले के मैं उड़ जाऊँगा कहाँ सय्याद

न हूँगा बंद क़फ़स में भी मैं वो बुलबुल हूँ
हज़ार तुझ को सुनाऊँगा दास्ताँ सय्याद

दर-ए-क़फ़स भी खुलेगा तो अब न जाऊँगा
यक़ीन न होवे तो कर मेरा इम्तिहाँ सय्याद

रिहा भी हो के न भूलूँगा हक़्क़-ए-ख़िदमत को
अदा-ए-शुक्र करूँगा मैं हर ज़बाँ सय्याद

चमन में बुलबुल-ओ-क़ुमरी का पर न छोड़ेगा
रहा जब आठ-पहर घात में निहाँ सय्याद

क़फ़स पे रखने लगा अब तो हार फूलों के
हज़ार शुक्र हुआ मुझ पे मेहरबाँ सय्याद

अज़ीज़ रखता है करता है ख़ातिरें मेरी
मिला है ख़ूबी-ए-क़िस्मत से क़द्र-दाँ सय्याद

निकालियो न क़दम आशियाँ से ओ बुलबुल
लगाए बैठे हैं फंदे जहाँ-तहाँ सय्याद

वो अंदलीब हूँ जल कर करूँ जो नाला-ए-गर्म
क़फ़स के चाकों से उठने लगे धुआँ सय्याद

मिरे बयान को सुन सुन के काँप काँप उठा
ग़ज़ब ये है कि समझता नहीं ज़बाँ सय्याद

इलाही देखिए क्यूँकर निबाह होता है
ज़बाँ-दराज़ हूँ मैं और बद-ज़बाँ सय्याद

सिवा-ए-शुक्र शिकायत अगर कभी की हो
इलाही क़त्अ हो मिंक़ार से ज़बाँ सय्याद

फ़रेब-ए-दाना न खाता मैं ज़ीनहार ऐ 'रिंद'
न करता दाम अगर ख़ाक में निहाँ सय्याद


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