क़याम-ए-दैर-ओ-तवाफ़-ए-हरम नहीं करते ज़माना-साज़ तो करते हैं हम नहीं करते तुम्हारी ज़ुल्फ़ को सुलझाएँगे वो दीवाने जो अपने चाक-ए-गरेबाँ का ग़म नहीं करते उतर चुका है रग-ओ-पै में ज़हर-ए-ग़म फिर भी ब-पास-अहद-ए-वफ़ा चश्म नम नहीं करते ये अपना दिल है कि इस हाल में भी ज़िंदा हैं सितम कुछ अहल-ए-सितम हम पे कम नहीं करते गिरफ़्ता-दिल हैं बुतान-ए-हरम कि अब शाइर नशात-ओ-ऐश के सामाँ बहम नहीं करते सुना रहे हैं जहाँ को हदीस-ए-दार-ओ-रसन हिकायत-ए-क़द-ओ-गेसू रक़म नहीं करते वो आस्तान-ए-शही हो कि आस्ताना-ए-दोस्त ये अब कहीं सर-ए-तस्लीम ख़म नहीं करते