पहुँच के हम सर-ए-मंज़िल जिन्हें भुला न सके वो हम-सफ़र थे जो कुछ दूर साथ आ न सके तमाम उम्र पशेमानियों में बीत गई ब-क़द्र-ए-शौक़ मोहब्बत के नाज़ उठा न सके मुझे ख़याल है उन दिल-गिरफ़्ता कलियों का जिन्हें नसीम-ए-सहर छेड़ दे खिला न सके कुछ ऐसे दर्द भी हैं ज़िंदगी की राहों में जहाँ हिजाब-ए-तबस्सुम भी काम आ न सके करम की आस के सायों में बुझ गया वो चराग़ हवा-ए-यास के झोंके जिसे बुझा न सके अँधेरी शब थी सितारों से क्या सुकूँ मिलता सितारे भी तो बहुत देर जगमगा न सके ग़ज़ल के हुस्न का एहसास उस को क्या 'जावेद' ख़ुलूस-ए-नर्मी-ए-गुफ़्तार को जो पा न सके