क़यास-ओ-यास की हद से निकल कर चली जाऊँ कहीं चेहरा बदल कर उड़ेगी राख फिर मेरी हवा में सुबुक-रफ़्तार हो जाऊँगी जल कर मैं सूरज के तआ'क़ुब में रहूँगी तुलू-ए-सुब्ह हो जाऊँगी ढल कर तिलिस्म-ए-मेहर-ओ-मह को तोड़ डाले ज़मीं अपनी हरारत से पिघल कर अभी पहला क़दम तय कर रही हूँ दोबारा गिर पड़ी थी मैं सँभल कर रहें फूलों भरे रस्ते सलामत सफ़र काटूँगी अंगारों पे चल कर मिरे अत्तार ने ख़ुशबू बनाई बहुत मा'सूम फूलों को मसल कर